मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है


मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है..

        एक बार एक युवक संत के पास आया और कहने लगा , ‘'गुरू महाराज ! मैंने अपनी शिक्षा से पर्याप्त ज्ञान ग्रहण कर लिया है । मैं विवेकशील हूं और अपना अच्छा-बुरा भली-भांति समझता हूं , किंतु फिर भी मेरे माता-पिता मुझे निरंतर सत्संग की सलाह देते रहते हैं । जब मैं इतना ज्ञानवान और विवेकयुक्त हूं, तो मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है ?'’

         संत ने उसके प्रश्न का मौखिक उत्तर न देते हुए एक हथौड़ी उठाई और पास ही जमीन पर गड़े एक खूंटे पर मार दी । युवक अनमने भाव से चला गया ।

        अगले दिन वह फिर संत के पास आया और बोला, " मैंने आपसे कल एक प्रश्न पूछा था, किंतु अापने उत्तर नहीं दिया । क्या आज आप उत्तर देंगे ?" संत ने पुन: खूंटे के ऊपर हथौड़ी मार दी। किंतु बोले कुछ नहीं । युवक ने सोचा कि संत हैं, शायद आज भी मौन में हैं ।

       वह तीसरे दिन फिर आया और अपना प्रश्न दोहराया । संत ने फिर से खूंटे पर हथौड़ी चलाई । अब युवक परेशान होकर बोला, ‘'आखिर आप मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं ? मैं तीन दिन से आपसे प्रश्न पूछ रहा हूं ।’' 

    तब संत बोले  ‘'मैं तो तुम्हें रोजजवाब दे रहा हूं । मैं इस खूंटे पर हर दिन हथौड़ी मारकर जमीन में इसकी पकड़ को मजबूत कर रहा हूं । यदि मैं ऐसा नहीं करूंगा तो इससे बंधे पशुओं द्वारा खींचतान से या किसी की ठोकर लगने से अथवा जमीन में थोड़ी सी हलचल होने पर यह निकल जाएगा । यही काम सत्संग हमारे लिए करता है । वह हमारे मनरूपी खूंटे पर निरंतर प्रहार करता है, ताकि हमारी पवित्र भावनाएं दृढ़ रहें । युवक को संत ने सही दिशा-बोध करा दिया। सत्संग हररोज नित्यप्रति हृदय में सत् को दृढ़ कर असत् को मिटाता है,"

इसलिए सत्संग हमारी जीवन चर्या का अनिवार्य अंग होना चाहिए.....

जय श्री कृष्ण....

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