कृष्ण सबकी सुनते है

भगवान से अच्छा हमारा कोई मित्र नही होता । भगवान खुद बोलते है । तुम अपने दुर्गुण , दोष , सब मुझसे कहो । मेरा भक्त यदि मुझे छोड़ कर किसी और से कुछ मांगता है , मानो मेरी अवहेलना करता है ।
जब भी तुम दुखी होते हो तुम मुझे अपने दुख शेयर करो मेरे सामने आंसू बहाओ । मैं हूँ न तुम्हारे आंसू पोंछने के लिए , तुम्हारे दुख दूर करने के लिए । लेकिन फिर भी हम मूर्ख इंसान उन करुणामयी को छोड़ कर इस मायावी दुनियां में गुम रहते है । नकली लोगो पर विश्वास व उस परमपिता पर अविश्वास करते है ।
भगवान तो हर पल इंतजार करते है कि मेरा भक्त मुझे पुकारे तो नंगे पांव दौड़ा जाऊ । लेकिन हम उनको उस आत्मीय से पुकारते ही नही कि हमारी आवाज उन तक पहुंच पाए । उस शिद्दत से उन पर भरोसा करते ही नही ।  वरना तो वो हमारी आंखों में आंसू  देख ही नही सकते । एक बार उनके सामने बैठ कर उनके चरणों मे दो आंसू अर्पित तो कीजिये । सबसे ज्यादा भगवान अपने भक्त के आंसुओं से पिघलते  है । बस एक बार उनको द्रोपदी के जैसे पुकारने की जरूरत है । हमारी पुकार में द्रोपदी के जैसे जिस दिन विश्वास होगा । उस दिन प्रभु दौड़े चले आएंगे

 एक सुंदर कथा - कृष्ण सबकी सुनते है

अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा महल में झाड़ू लगा रही थी तो द्रौपदी उसके समीप गई उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली," पुत्री भविष्य में कभी तुम पर दुख,पीड़ा या घोर से घोर विपत्ति भी आए तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना। सीधे भगवान की शरण में जाना।"

उत्तरा हैरान होते हुए माता द्रौपदी को निहारते हुए बोली,"
आप ऐसा क्यों कह रही हैं माता? " द्रौपदी बोली,

" क्योंकि यह बात मेरे ऊपर भी बीत चुकी है।

जब मेरे पांचों पति कौरवों के साथ जुआ खेल रहे थे, तो अपना सर्वस्व हारने के बाद मुझे भी दांव पर लगाकर हार गए। फिर कौरव पुत्रों ने भरी सभा में मेरा बहुत अपमान किया।

मैंने सहायता के लिए अपने पतियों को पुकारा मगर वो सभी अपना सिर नीचे झुकाए बैठे थे। पितामह भीष्म, द्रोण धृतराष्ट्र सभी को मदद के लिए पुकारती रही मगर किसी ने भी मेरी तरफ नहीं देखा
वह सभी आंखे झुकाए आंसू बहाते रहे।"
फिर मैंने भगवान से कहा, "आपके सिवाय मेरा कोई भी नहीं है।
भगवान तुरंत आए और मेरी रक्षा करी।

जब द्रौपदी पर ऐसी विपत्ति आ रही थी तो द्वारिका में श्री कृष्ण बहुत विचलित होते हैं ।
क्योंकि उनकी सबसे प्रिय भक्त पर संकट आन पड़ा था।
रूकमणि उनसे दुखी होने का कारण पूछती हैं तो वह बताते हैं मेरी सबसे बड़ी भक्त को भरी सभा में नग्न किया जा रहा है।
रूकमणि बोलती हैं, "आप जाएं और उसकी मदद करें।"
श्री कृष्ण बोले, " जब तक द्रोपदी मुझे पुकारेगी नहीं मैं कैसे जा सकता हूं।
एक बार वो मुझे पुकार लें तो मैं तुरंत उसके पास जाकर उसकी रक्षा करूंगा।

तुम्हें याद होगा जब पाण्डवों ने राजसूर्य यज्ञ करवाया तो शिशुपाल का वध करने के लिए" मैंने अपनी उंगली पर चक्र धारण किया तो उससे मेरी उंगली कट गई"।
उस समय "मेरी सभी 16 हजार 108 पत्नियां वहीं थी। कोई वैद्य को बुलाने भागी तो कोई औषधि लेने चली गई"!
मगर उस समय "मेरी इस भक्त ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और उसे मेरी उंगली पर बांध दिया । आज उसी का ऋण मुझे चुकाना है लेकिन जब तक वो मुझे पुकारेगी नहीं मैं नहीं जाऊंगा।"
अत: द्रौपदी ने जैसे ही भगवान कृष्ण को पुकारा प्रभु तुरंत ही दौड़े गए।
जय श्री कृष्ण


Comments

Popular posts from this blog

नीरा आर्य की कहानी

संसार में सुखी कौन है